जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अगले चुनाव में युवाओं की भूमिका को भांपते हुए भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने देश भर से जुटे हजारों छात्रों को साध लिया। बुधवार को देश के 200 कॉलेजों से हजारों छात्र जुटे थे। उन्होंने प्रजेंटेशन के जरिये युवाओं के मनचाहे भारत का खाका खींचा था। समापन भाषण में मोदी ने हर बिंदु को छुआ और खास ध्यान रखा कि पूरा मुद्दा विकास आधारित हो और देश का वर्तमान नेतृत्व भी कठघरे में खड़ा किया जाए। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है, 'पहले शौचालय फिर देवालय'। मेरी प्राथमिकता है पहले विकास। मैंने गुजरात में यह कर दिखाया है। गौरतलब है कि ऐसे ही एक बयान को लेकर ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश की खासी आलोचना हुई थी।
मोदी ने जहां युवाओं को विकास और रोजगार के मंत्र दिए, वहीं धर्मनिरपेक्षता पर छिड़ी बहस को भी देश के विकास से जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता वही सही है, जो देश को विकास के रास्ते पर ले जाए। धर्मनिरपेक्षता का मतलब सर्वधर्म समभाव है। इसमें सभी के लिए न्याय है, लेकिन यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी का तुष्टीकरण न किया जाए। देश और समाज की भलाई तभी होगी, जब इस धर्मनिरपेक्षता का पालन होगा। युवा भी उनकी बात से सहमत दिखे। तालियों से हॉल गूंज उठा। मोदी को अहसास था कि युवा अपने नेतृत्व को लेकर खासा जाग्रत होते हैं। लिहाजा, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उनके निशाने पर थे।
कुछ मुलाकातों का हवाला देते हुए उन्होंने संकेत दिया कि केंद्र सरकार न तो कोई निर्णय ले सकती है और न ही कोई नई सोच अपना सकती है। खामियाजा देश भुगत रहा है। उन्होंने कहा कि नेतृत्व में फैसला लेने की क्षमता होनी चाहिए।
मोदी ने तकनीक का भी उल्लेख किया और कहा कि पारदर्शिता के लिए इसका उपयोग जरूरी है। महिलाओं के सशक्तिकरण, आधारभूत ढांचों के निर्माण जैसी समस्याओं को भी गुजरात मॉडल से जोड़ते हुए संकेत दिया कि देश को भी अब सशक्त नेतृत्व की जरूरत है। इंटरनेट और सोशल मीडिया पर सक्रिय युवाओं को भरोसा दिया कि वह उनके सपने अधूरे नहीं रहने देंगे।
उन्होंने अपील की कि देश के लिए कोई भी सुझाव हो तो वह कभी भी सोशल मीडिया के जरिए उनसे संपर्क साध सकते हैं। लगभग एक घंटे के भाषण में युवाओं की तालियों के शोर ने मोदी को जरूर बड़ा हौसला दिया होगा। आखिरकार मोदी उन्हें यह बताने से नहीं चूके कि बदलाव का रास्ता वोट से होकर गुजरता है। अगर युवा बदलाव चाहते हैं तो वे अपनी इस जिम्मेदारी को भी निभाएं।
'मुझे एक हिंदूवादी नेता के तौर पर पहचाना जाता है। मेरी छवि मुझे ऐसा कहने की अनुमति नहीं देती, लेकिन मैं यह कहने की हिम्मत कर रहा हूं कि पहले शौचालय फिर देवालय। गांवों में मंदिरों पर लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन वहां शौचालय नहीं हैं।'
-नरेंद्र मोदी
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