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Saturday 5 October 2013

पहले शौचालय, फिर देवालय – डॉ. वेदप्रताप वैदिक


Dr.-Ved-pratap-Vaidik  नरेंद्र मोदी के इस कथन पर मुझे कई साधु-संतों ने फोन करके आश्चर्य व्यक्त किया कि ‘पहले शौचालय और फिर देवालय’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ उच्च पदस्थ अधिकारियों ने भी शंका व्यक्त की कि क्या सचमुच नरेंद्र मोदी ने ऐसा कहा है?  सचमुच नरेंद्र मोदी के इस कथन का कई तबकों में गलत अर्थ लगाया जा सकता है। नरेंद्र मोदी पर चारों तरफ से इतना दबाव पड़ सकता है कि वे या तो अपने कथन को वापस ले सकते हैं या जैसा कि नेता करते हैं, वे लीपा-पोती करके बच निकलना पसंद करें।
यदि नरेंद्र मोदी ऐसा करते हैं तो वे गलत करेंगे। उन्हें अपने बयान पर डटना चाहिए। उन्होंने यह बयान कल दिल्ली में युवजन के साथ एक जीवंत संवाद में दिया था। यह वाक्य बोलने के पहले उन्होंने प्रश्नोत्तर के दौरान कहा था कि गरीब, गरीब है। उसके हिंदू, मुसलमान या ईसाई होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। देश के करोड़ों लोगों के लिए शौचालय होना जरुरी है।
शौचालय, देवालय से भी ज्यादा जरुरी क्यों है, यह मोदी ने बताया या नहीं लेकिन मैं बताना चाहता हूं। देवालय तो हर मनुष्य के हृदय में होता है। ईंट और चूने का देवालय हो या न हो, ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। ईंट-चूने का भव्य देवालय आपने बना दिया लेकिन आपके दिल में देव नहीं है तो वह देवालय किस काम का है?  देव की आराधना तो देवालय के बिना भी अच्छी तरह से हो सकती है लेकिन शौचालय के बिना शोच कैसे होता है,  क्या आपको पता है?
करोड़ों लोग आज भी गांव के बाहर या बस्ती से दूर लोटा लेकर शौच करने जाते हैं। अशक्त, बीमार और वृद्ध लोगों के लिए यह अतिरिक्त सजा होती है। कई बार शौच बीच में ही हो जाता है। कई बार लोग बरसात,  कीचड़ और धूप के मारे ठीक से शौच नहीं कर पाते। खुले में शौच करने पर जो बीमारियां गांवों में फैलती हैं,  उनके नुकसान का अंदाज़ लगाना भी मुश्किल है। जो शौच शरीर को स्वच्छ रखने के लिए किया जाता है,  उसी के कारण लाखों शरीर रुग्ण हो जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है – ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’  अर्थात धर्म का सर्वप्रथम साधन शरीर ही है। शरीर की स्वस्थता से ही धर्मपालन का प्रारंभ होता है।  यदि शौचालय सबको उपलब्ध हों तो इससे बड़ा धर्मसाधन क्या हो सकता है?
देश में शौचालयों की कमी के कारण सबसे भयंकर अत्याचार औरतों पर होता है। वे दिन के उजाले में शौच नहीं जा पातीं। शौच को रोके रखने से असाध्य रोग हो जाते हैं। मैंने गांवों में कई बार रात को देखा है कि दर्जनों स्त्रियां बस्तियों के बाहर लंबी-लंबी कतारें लगाकर शौच के लिए बैठी रहती हैं और ज्यों ही हमारी कार वहां से गुजरती हैं, वे रोशनी से लज्जित होकर उठ-उठकर भागने लगती हैं। उनसे ज्यादा शर्म मुझे आती है। हमने अपने इंसानों को जानवर बना रखा है और हम धर्म की डींगे मारते हैं।
मोदी के उक्त कथन को राम मंदिर विरोधी बताना भी बचकाना है। ये दो बिल्कुल अलग बाते हैं। मोदी ने जो यह क्रांतिकारी बात कही,  यह गांधी जयन्ती के अवसर पर कही है। गांधी स्वच्छता को, सफाई को, शौच को भगवत्कार्य मानते थे। एक बार कस्तूरबा से इसी मुद्दे पर गांधी इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने बा को सीढ़ियों पर से नीचे धकेल दिया था। यदि मोदी पर अब अटलजी के साथ-साथ गांधीजी का भी अवतरण हो रहा है तो मैं उसका स्वागत करता हूं।

1 comment:

  1. हम भारतीयों के लिये शौचालय की आवश्‍यकता का आकलन महिलाओं सं ज्‍यादा कौन कर सकता है।

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